What is Yoga – योगा क्या है? भारतीय इतिहास मे प्राचीन काल से ही योग का बढ़ा महत्व रहा है। योग सही तरीके से जीने के लिए, स्वस्थ रहने के लिए एक विज्ञान है। अत: योग को दैनिक जीवन मे शामिल किया जाना चाहिए। योग का अर्थ होता है “एकता” यह हमारे जीवन के आत्मिक, […] More The post What is Yoga? It’s benefits, rules and types – योग क्या है? योग के लाभ, नियम और प्रकार appeared first on HindiSwaraj. source https://hindiswaraj.com/what-is-yoga-its-benefits-rules-and-types-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/what-is-yoga-its-benefits-rules-and.html
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आयुर्वेद के अनुसार कोई भी रोग केवल शारीरिक एवं केवल मानसिक नहीं होता अपितु यदि शारीरिक रोग हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव मन पर और यदि मानसिक हो जाये तो इसका सीधा-सीधा प्रभाव शरीर पर निश्चित रूप से पड़ता है । इसी कारण आयुर्वेद का एक सफल वैद्य अपने रोगी के केवल रोग के […] More The post Ayurvedic treatment and Ayurvedic medicine- आयुर्वेदीय चिकित्सा एवं आयुर्वेदिक औषधियां appeared first on HindiSwaraj. source https://hindiswaraj.com/ayurvedic-treatment-and-ayurvedic-medicine-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/ayurvedic-treatment-and-ayurvedic.html आयुर्वेदिक उत्पाद एक व्यक्तिगत देखभाल और स्वास्थ्य संबंधी उत्पाद हैं जो औषधीय उपचार प्रयोजनों के लिए उपयोग किए जाते हैं। महिलाओं के शिक्षित होने की दर अधिक होने एवं कामकाजी महिलाओं की संख्या में वृद्धि होने कारण तथा ब्यूटी प्रोडक्ट में लगातार रसायनों के बढ़ते दर के कारण महिलयां व्यक्तिगत देखभाल के लिये हर्बल सौदर्य […] More The post Ayurvedic medical industry in India- भारत में आयुर्वेदीय चिकित्सा उद्योग appeared first on HindiSwaraj. source https://hindiswaraj.com/ayurvedic-medical-industry-in-india-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/ayurvedic-medical-industry-in-india.html किसी भी ज्ञान को व्यवहारिक रूप से उपयोगी बनाने के लिये आवश्यक है कि उस ज्ञान का शोधन एवं परिक्षण होते रहना चाहिये । उस ज्ञान के विकास के लिये यह भी आवश्यक है कि उसे आने वाली पीढ़ी तक इसे पहुँचाया जाये । इसी क्रिया को आज शिक्षा या शिक्षण कहते हैं । चिकित्सा […] More The post Education and Research in Ayurvedic Medicine- आयुर्वेदिक आयुर्विज्ञान की शिक्षा एवं अनुसंधान appeared first on HindiSwaraj. source https://hindiswaraj.com/education-and-research-in-ayurvedic-medicine-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/education-and-research-in-ayurvedic.html
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श्रीमद्भागवत पुराण के साथ-साथ कई अनेक हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों में समुद्रमंथन की चर्चा है । श्रीमद्भागवत के अनुसार इस समुद्रमंथन से साक्षात भगवान बिष्णु के अंशांश अवतार हाथों में कलश लिये धनवंतरी प्रगट हुये, जो आयुर्वेद के प्रवर्तक थे । महर्षि बाल्मीकी ने अपनी कृति रामायण में धनवंतरी को ‘आयेर्वेदमय’ अर्थात आयुर्वेद का साक्षात स्वरूप कहा है । इस प्रकार अन्येन ग्रंथों की मान्यताओं के अनुसार भगवान धनवंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है । किन्तु आयुर्वेद के आदि प्रवर्तक स्वयम्भू ब्रह्मा हैं, जिन्होंने इसका सर्वप्रथम उपदेश दक्षप्रजापति को किया था । दक्ष ने इसका ज्ञान अश्विनीकुमारों को दिया, जिनसे देवराज इंद्र द्वारा होते हुये अनेक ऋषियों कश्यप, वसिष्ठ, अत्रि, भृगु आदि तक पहुँचा । आयुर्वेद के इतनी लंबी यात्रा के सभी बातों को एक आलेख में समेटना संभव नहीं है । फिर भी प्रमुख सोपानाें को सम्मिलित कर आयुर्वेद उदृभव से विकास क्रम को संक्षिप्त रूप में प्रमखु आचार्य एवं उनके आयुर्वेद के अनुदान को स्मरण करते हुये आज किये जा रहे प्रयासों को रेखांकित करने का प्रयास किया जा रहा है । Maharshi Kashyap’s Kashnyasamhita– महर्षी कश्यप की काश्यसंहिता-महर्षि कश्यप का एक प्राचीन ग्रंथ का नाम है ‘काश्यप संहिता’ है । जब इस इस ग्रंथ प्रचार कम होने लगा तो ऋचिक मुनी कं पांच वर्षीय पुत्र जीवक ने इसे नये रूप में प्रस्तुत किया जिसे ‘वृद्धजीवकीय तंत्र’ कहा गया । इस ग्रंथ में समस्त आयुर्वेदीय विषयों का प्रश्नोत्तररूप में निरूपण किया गया । बाद में इसी ‘वृद्धजीवकीय तंत्र’ से -अष्टांग आयुर्वेद’ की रचना हुई । कलान्तर में इसे ही ‘कौमारभृत्यतन्त्र’ के नाम से जाना गया । Waghata Code of Acharya Vagbhat– आचार्य वाग्भट की वाग्भट संहिता-आचार्य वाग्भट की ‘वाग्भट संहिता’ जिसे ‘अष्टांगहृदय’ के नाम से भी जाना जाता है कि रचना लगभग 500 ईसापूर्व की माना जाती है । इस ग्रंथ में आयुर्वेद के संपूर्ण विषय को आठ भागों में विभाजित करते औषधि और शल्य चिकित्सा दोनो का समान रूप से समावेश किया गया है । इस ग्रंथ को शरीर रूपी आयुर्वेद के हृदय के रूप में स्वीकार किया गया है । Charaka Samhita of Acharya Charaka– आचार्य चरक की चरक संहिताआचार्य चरक और आयुर्वेद का इतना घनिष्ठ संंबंध है कि आज भी ये दोनों नाम एक दूसरे के पूरक लगते हैं । आचार्य चरक आयुर्वेद के मर्मज्ञ थे । ऐसा कहा जाता है कि आचार्य चरक न केवल संहिताग्रन्थों के प्रणयन में संलग्न रहते थे, अपितु वे घूम-घूम कर जहॉं भी रोगी मिलते उनका उपचार किया करते थें । उनकी कृति ‘चरक संहिता’ चिकित्सा जगत का अत्यंत प्रमाणिक एवं प्राचीन ग्रंथ माना जाता है । चरक संहिता को तात्कालिक भाषा के अनुसार बहुत सहज एवं सरल भाषा में लिखी गई मानी जाती है । चरक संहिता में सूत्र, निदान, विमान, शरीर, इन्द्रिय, चिकित्सा, सिद्धि, और कल्प नाम से आठ भाग हैं । इस ग्रंथ के अनुसार तृष्णा को रोगों का प्रधान कारण बताया गया है । Sushruta Samhita of Acharya Sushruta– आचार्य सुश्रुत की सुश्रुत संहिताआचार्य सुश्रुत प्राचीन काल के एक उच्चकोटि के आयुर्वेदाचार्य एवं शल्यचिकित्सक थे । जहॉं भगवान धनवंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है वहीं आचार्य सुश्रुत को शल्यचिकित्सा का जनक माना जाता है । सुश्रुत ने ‘सुश्रुतसंहिता’ नामक वृहद ग्रंथ की रचना की जिसे पांच स्थान के नाम से सूत्रस्थान, निदानस्थान, शरीर स्थान, चिकित्सा स्थान और कल्पस्थान में बांटा गया है । अंत में उत्तरतंत्र नाम से परिशिष्ट भी जोड़ा गया है । सुश्रुत अपने ग्रंथ में ‘यन्त्रशतमेकोत्तरम्’ में 100 शल्य तंत्र का उल्लेख किया है जिसमें शरीर के लगभग सभी अंगों की शल्य चिकित्सा का वर्णन मिलता है । आचार्य सुश्रुत त्वचारोपण, मोतियाबिंद शल्य, गर्भ शल्य, आदि कई शल्यक्रियाओं के विशेषज्ञ थे । आजकल सर्जिकल ऑपरेशन में प्रयुक्त उपकरणों का वर्णन ‘सुश्रुत संहिता’ में मिलता है । इस संहिता की रचना लगभग तीसरी सदी में हुई । Madhavnidan Samhita of Acharya-Madhava-आचार्य माधव की माधवनिदान संहितानिदाने माधव: श्रेष्ठ:’ अर्थात रोगों के निदान के लिये आचार्य माधव का ग्रंथ ‘माधवनिदान’ श्रेष्ठ है । आयुर्वेद के अनुसार और आज के आधुनिक चिकित्सा पद्यति के अनुसार भी उपचार के तीन चरण होते हैं -1. रोगों के कारण को जानना, 2. रोगों के लक्षण को जानना, और 3. रोगी के लिये उपयुक्त औषधि का चयन करना इसे ही आयुर्वेद में क्रमश: हेतुज्ञान, लिंगज्ञान एवं औषधज्ञान कहा गया है । इन तीनों में लिंगज्ञान का महत्व सबसे ज्यादा है क्योंकि जब रोग का लक्ष्ण ठीक-ठाक जान लेने के पश्चात ही उसका उपचार उचित रूप से किया जा सकता है । इसी आवश्यकता के आधार पर आचार्य माधव ने एक ग्रंथ की रचना की जिसे ‘माधवनिदान’ के नाम से जाना गया । इस ग्रंथ में ज्वर को प्रधान बतलाते हुये इसे वात, कफ एवं पीत जनित मानते हुये वातज, पितज, कफज, वातपितज, वातकफज, पितकफज, त्रिदोष और आगन्तुज आठ भेद बताये गये हैं । इसके साथ ही इस गंथ में अतिसार, ग्रहणी, अर्श, अग्निमांध क्रिमि, पाण्डु, रक्तपित्त, कामला, राजयक्ष्मा,स्वरभेद, दाह, उन्माद, अपस्मार, हृदयरोग,, मुत्ररोग, प्रेमह, उदर, शेथ, गलगण्ड, श्लीपद विद्रधि आदि अनेक रोगों पर व्यापक चर्चा है । इस कृति छठवी सदी का माना जाता है । Acharya Shargadhar’s Shargadhar Code– आचार्य शार्ङ्गधर की शार्ङ्गधर संहितानाड़ीज्ञान द्वारा रोग-परीक्षण आयुर्वेद की एक विलक्षण विधा है । आयुर्वेद में नाड़ीशास्त्र का अपना अलग महत्त्व है । नाड़ी शास्त्र के रचनाकार के रूप में महर्षी कणद का नाम आता है । इसी कड़ी में आचार्य शार्ङ्गधर की ‘शार्ङ्गधर संहिता’ विशेष उल्लेखनिय है । इस ग्रंथ की रचना 12वी सदी में मानी जाती है । इस ग्रंथ में नाड़ी किस प्रकार देखा जाता है ? उससे क्या परिणाम निकाले जा सकते हैं ? जैसे प्रश्नों का उत्र सटिक रूप में दिया गया है । इस ग्रंथ का परिचय ही नाड़ी शास्त्र के रूप में स्वीकार किया गया है । Jeevak Kaumarbritya- जीवक कौमारभृत्यजीवक कौमारभृत्य को आयुर्वेद का इतिहास पुरुष कहा जाता है । इतिहास में उनके द्वारा चिकित्सा किए जाने की अनेक वर्णन मिलते हैं। संभवत प्रथम मस्तिष्क शल्य क्रिया जीवक कौमारभृत्य नहीं क्या था । इसके संबंध में वर्णन मिलता है की एक नगर सेठ जिनके मस्तिष्क में कीड़े हो गए थे । उनका कई वैद्य ने निरीक्षण किया उपचार किया किंतु ठीक नहीं हो पाया कुछ वैद्य ने उन्हें 5 दिन ही और जीवित रहने तो किसी ने 7 दिनों की जीवन अवधि सेस होने की सूचना दे दी । इसी बीच जीवक कौमारभृत्य ने उसका निरीक्षण किया और उसके मस्तिष्क को काटकर मस्तिष्क से कीड़े बाहर निकाल कर पुनः मस्तिष्क की सिलाई कर दिया और जो रोगी केवल 7 दिन तक जीवित रह सकता था वह 21 दिन के अंदर पुनर्जीवन को प्राप्त किया। Acharya Bhavprakash’s work Bhavaprakash- आचार्य भावप्रकाश की कृति भावप्रकाश16वी सदी के आसपास आचार्य भावप्रकाश रचित ग्रंथ आयुर्वेद लघुत्रीय परिगणित है अर्थात इस ग्रंथ में आयुर्वेद के जटिल सिद्धांतों को संक्षेप रूप में प्रस्तुत किया गया है । इस ग्रंथ में दिनचर्या, रात्रिचर्या, आहार-विहार, तथा सदाचार को लाभकारी बताया गया है । इस ग्रंथ के अनुसार रोग के दो भेद होते हैं एक कर्मज और दूसरा दोषज । इसमें कर्मज रोगों का कारण दुष्कर्म को बताया गया है तथा इसका निदान प्रायश्चित को बताया गया है । दोषज रोग का कारण दिनचर्या, रात्रिचर्या, और आहार-विहार में दोष को बताया गया जिसके कारण वात, पित एवं कफ में असंतुलन के कारण रोग उत्पन्न होते हैं । इसी आधार पर इसके उपचार कहे गयें हैं । Vaidya Chintamani composed by Vallabhacharya- वल्लभाचार्य रचित वैद्य चिंतामणि16 वीं शताब्दी में वल्लभाचार्य ने वैद्य चिंतामणि नामक ग्रंथ की रचना की। इस ग्रंथ का पहचान नाड़ी शास्त्र के रूप में होता है । इसी के समय से पुरुषों के दाएं हाथ एवं महिलाओं के बाएं हाथ का परीक्षण का विधान बना तथा हाथ के अतिरिक्त पैर से भी नाड़ी परीक्षण का इसमें वर्णन मिलता है । Vaidya Jeevan composed by Lolimbaraj- लोलिम्बराज रचित वैद्य जीवन17 वी शताब्दी में लोलिम्बराज ने वेद जीवन नामक ग्रंथ की रचना की इसमें ज्वर, ज्वरातिसार, ग्रहणी, कास-श्वास, आमवात, कामला, स्तन्यदुष्टि, प्रदर, क्षय, व्रण, अम्लपित्त, प्रमेह आदि रोगों तथा वाजीकरण और विविध रसायनों का उल्लेख मिलता है । Presently working Ayurveda Research Institute– वर्तमान में कार्यरत आयुर्वेद शोध संस्थानऐसा कदापि नहीं है कि आयुर्वेद केवल इतिहास का विषय रह गया हो । आयुर्वेद पर आज भी शोध अनुसंधान कार्य चल रहा है । इस कार्य में भारत के कई संस्थान कार्यरत हैं जो आयुर्वेद शिक्षा एवं चिकित्सा को आगे बढ़ा रहे हैं । इनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार है- 1. अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली- यह देश का आधुनिक शिक्षा एवं रिसर्च सेंटर है जो 2017 से कार्य कर रहा है इसके साथ 200 बिस्तरों वाला सर्व सुविधा युक्त अस्पताल भी संलग्न है । 2. राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान जयपुर राजस्थान- इसकी स्थापना 1976 में की गई थी। यहां आयुर्वेद पर डिप्लोमा से लेकर स्नातक और पीएचडी तक का कोर्स कराया जाता है। 3. गुजरात आयुर्वेद विश्वविद्यालय जामनगर गुजरात – आयुर्वेद का वैश्विक प्रचार-प्रसार इस संस्थान का मिशन है. यहां यूरोप, अफ्रीका और सार्क देशों के छात्र भी पढ़ते हैं । 4. आयुर्वेद संकाय चिकित्सा विज्ञान हिंदू विश्वविद्यालय बनारस-1922 से इस विद्यालय में आयुर्वेद की शिक्षा दी जा रही है । यह संस्थान पुरानी चिकित्सा पद्धति और आधुनिक चिकित्सा पद्धति का बेजोड़ मेल प्रदर्शित करने के लिए जाना जाता है । 5. राजकीय आयुर्वेद कॉलेज तिरुअनंतपुरम केरल-इसकी स्थापना 1889 में की गई थी इस कॉलेज में आयुर्वेद के 14 विभाग कार्यरत है जिसमें विद्यार्थियों को आयुर्वेद की शिक्षा दी जाती है । 6. डीएमके आयुर्वेद कॉलेज केएलई यूनिवर्सिटी कर्नाटक- यहां भारती मेडिसिन पद्धतियों का विकास एवं प्रसार किया जाता है । आयुर्वेद के क्षेत्र में अनेक शोध कार्य यहां किए जाते हैं । 7. पोदार आयुर्वेद कॉलेज वर्ली मुंबई- इसकी स्थापना 1941 में की गई थी जहां वर्तमान में विद्यार्थियों को स्नातक से लेकर डॉक्टर तक की डिग्री दी जाती है यहां का हर्बल गार्डन आयुर्वेद के शोधार्थियों के लिए उपयोगी है । इन संस्थानों के अतिरिक्त देश के प्रायः हर राज्य में या तो आयुर्वेद कॉलेज है अथवा आयुर्वेद यूनिवर्सिटी । लाखों ग्रामों में आयुर्वेद चिकित्सा केंद्र भी संचालित है इस प्रकार पूरे घटनाक्रम को देखने के बाद यह कहा जा सकता है की आयुर्वेद भारत की मिट्टी में सम्मिलित है जिसे अलग नहीं किया जा सकता । आज भी करोड़ों लोग आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को या तो आयुर्वेद वैद्य की सहायता से अथवा घरेलू नुस्खे उपचार के सहायता से प्रयोग में ला रहे हैं । आधुनिक आयुर्वेद संस्थानों के कार्यरत होने से इस पर विभिन्न वैज्ञानिक शोध हो रहे हैं जिससे आयुर्वेद का भविष्य उज्जवल दिखाई देता है। The post Journey from the original promoter of Ayurveda to the Ayurvedic Institute of today- आयुर्वेद के आदि प्रवर्तक से आज के आयुर्वेदिक संस्थान तक की यात्रा appeared first on Hindi Swaraj. source https://hindiswaraj.com/journey-from-the-original-promoter-of-ayurveda-to-the-ayurvedic-institute-of-today-%e0%a4%86%e0%a4%af%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a5%87%e0%a4%a6-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%86%e0%a4%a6/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/journey-from-original-promoter-of.html आमेर किला या अंबर किला आमेर, राजस्थान, भारत में स्थित एक किला है। आमेर, राजस्थान की राजधानी जयपुर से 11 किलोमीटर दूर स्थित 4 वर्ग किलोमीटर का एक शहर है। आमेर और अंबर किले का शहर मूल रूप से मीनाओं द्वारा बनाया गया था, और बाद में इस पर राजा मान सिंह प्रथम का शासन था। यह एक पहाड़ी पर स्थित है और जयपुर का प्रमुख पर्यटक आकर्षण है। आमेर किला अपने कलात्मक शैली तत्वों के लिए जाना जाता है। अपने विशाल प्राचीर और द्वारों और सिलबट्टे रास्तों की श्रृंखला के साथ, किला माओटा झील, से दिखता है जो आमेर पैलेस के लिए पानी का मुख्य स्रोत है। Geography of Amer Quila – आमेर किले की जियोग्राफीआमेर पैलेस एक पहाड़ी पहाड़ी क्षेत्र पर स्थित है जो राजस्थान की राजधानी जयपुर शहर से लगभग 11 किलोमीटर की दूरी पर आमेर शहर के पास माटा झील में मिलती है। महल राष्ट्रीय राजमार्ग 11C से दिल्ली के पास है। एक संकीर्ण 4 वाइड सड़क प्रवेश द्वार तक जाती है, जिसे किले के सूरज पोल के रूप में जाना जाता है। अब पर्यटकों के लिए हाथी की सवारी करने के बजाय किले तक जीप की सवारी करना अधिक नैतिक माना जाता है। History of Amer Quila – आमेर किले का इतिहासआमेर में बस्ती की स्थापना 967 ईस्वी में मीनाओं के चंदा वंश के शासक राजा एलन सिंह ने की थी। आमेर किला, जैसा कि अब खड़ा है, आमेर के कछवाहा राजा, राजा मान सिंह के शासनकाल के दौरान इस पहले के ढांचे के अवशेषों पर बनाया गया था। उनके वंशज जय सिंह प्रथम द्वारा संरचना का पूरी तरह से विस्तार किया गया था। बाद में भी, आमेर किले ने अगले 150 वर्षों में लगातार शासकों द्वारा सुधार और परिवर्धन किया, जब तक कि कछवाहों ने 1727 में सवाई जय सिंह द्वितीय के समय में अपनी राजधानी जयपुर स्थानांतरित नहीं की। पहला राजपूत ढांचा राजा काकील देव द्वारा शुरू किया गया था जब राजस्थान के वर्तमान जयगढ़ किले की साइट पर 1036 में अंबर उनकी राजधानी बनी थी। 1600 के दशक में राजा मान सिंह I के शासनकाल में अम्बर की कई वर्तमान इमारतों का निर्माण या विस्तार किया गया था। मुख्य भवन में राजस्थान के अंबर पैलेस में दीवान-ए-खास और मिर्जा राजा जय सिंह प्रथम द्वारा निर्मित गणेश पोल है। वर्तमान आमेर पैलेस 16 वीं शताब्दी के अंत में बनाया गया था, जो कि शासकों के पहले से मौजूद घर का एक बड़ा महल था। पुराने महल को कदीमी महल (प्राचीन के लिए फारसी) के रूप में जाना जाता है, जिसे भारत में सबसे पुराना जीवित महल कहा जाता है। यह प्राचीन महल आमेर पैलेस के पीछे घाटी में स्थित है। Layout of Amer Quila – आमेर किले का लेआउटपैलेस को छह अलग-अलग लेकिन मुख्य खंडों में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक में प्रवेश द्वार और आंगन हैं। मुख्य प्रवेश द्वार सूरज पोल (सूर्य द्वार) के माध्यम से है जो पहले मुख्य प्रांगण की ओर जाता है। यह वह जगह थी जहाँ सेनाएँ युद्ध से लौटने पर अपने युद्ध के इनाम के साथ विजय परेड आयोजित करती थीं, जिसे जालीदार खिड़कियों के माध्यम से शाही परिवार की महिलाबोल भी देखा जाता था। First Courtyard – पहला आँगनजलेबी चौक से एक प्रभावशाली सीढ़ी मुख्य महल के मैदान में जाती है। यहाँ, सीढ़ी के सीढ़ियों के दाईं ओर प्रवेश द्वार पर सिल्ला देवी मंदिर है जहाँ राजपूत महाराजाओं ने पूजा की थी, जो महाराजा मानसिंह के साथ 1980 के दशक तक शुरू हुई थी, जब पशु बलि अनुष्ठान शाही द्वारा किया जाता था। रुक गया था। गणेश द्वार, जिसका नाम हिंदू भगवान भगवान गणेश के नाम पर रखा गया है, जो जीवन की सभी बाधाओं को दूर करता है, महाराजाओं के निजी महलों में प्रवेश है। यह एक तीन-स्तरीय संरचना है जिसमें कई भित्ति चित्र हैं जो मिर्जा राजा जय सिंह (1621-1627) के आदेश पर बनाए गए थे। इस द्वार के ऊपर सुहाग मंदिर है जहाँ शाही परिवार की महिलाएँ दीवान-ए-आम में जालीदार संगमरमर की खिड़कियों के माध्यम से नामक समारोह देखती थीं। Second Couryard – दूसरा आँगनदूसरा आंगन, प्रथम स्तर के आंगन की मुख्य सीढ़ी तक, दीवान-ए-आम या सार्वजनिक प्रेक्षागृह है। स्तंभों की एक डबल पंक्ति के साथ निर्मित, दीवान-ए-आम 27 उपनिवेशों वाला एक उठाया हुआ मंच है, जिनमें से प्रत्येक को हाथी के आकार की राजधानी के साथ रखा गया है, जिसके ऊपर गैलरी हैं। जैसा कि नाम से पता चलता है, राजा (राजा) ने जनता से याचिकाएं सुनने और प्राप्त करने के लिए यहां दर्शकों को रखा। Third Courtyard – तीसरा आँगनतीसरा प्रांगण वह जगह है जहाँ महाराजा, उनके परिवार और परिचारक के निजी क्वार्टर स्थित थे। इस आंगन में गणेश पोल या गणेश गेट के माध्यम से प्रवेश किया जाता है, जो मोज़ाइक और मूर्तियों से सुशोभित है। आंगन में दो इमारतें हैं, एक के विपरीत एक, मुगल गार्डन के फैशन में रखी गई एक बगीचे से अलग है। प्रवेश द्वार के बाईं ओर की इमारत को जय मंदिर कहा जाता है, जो कांच के पैनल और बहु-मिरर छत के साथ उत्कृष्ट रूप से सुशोभित है। दर्पण उत्तल आकार के होते हैं और रंगीन पन्नी और पेंट के साथ डिज़ाइन किए जाते हैं जो उस समय मोमबत्ती की रोशनी में चमकदार होते थे जब यह उपयोग में था। शीश महल (दर्पण महल) के रूप में भी जाना जाता है, दर्पण मोज़ाइक और रंगीन चश्मा “टिमटिमाती मोमबत्ती की रोशनी में चमकता हुआ गहना बॉक्स” था। Fourth Courtyard – चौथा आँगनचौथा आंगन वह है जहाँ जनाना (शाही परिवार की महिलाएँ, जिसमें रखैल या मालकिन भी शामिल हैं) रहती थीं। इस प्रांगण में कई लिविंग रूम हैं, जहाँ रानियाँ निवास करती थीं और जिन्हें राजा द्वारा उनकी पसंद के बिना यह पता लगाया जाता था कि वह किस रानी से मिलने आ रही हैं, क्योंकि सभी कमरे एक सामान्य गलियारे में खुलते हैं। इस आंगन के दक्षिण में मान सिंह I का महल है, जो महल के किले का सबसे पुराना हिस्सा है। [५] महल को बनने में 25 साल लगे और राजा मान सिंह I (1589-1614) के शासनकाल में 1599 में पूरा हुआ। यह मुख्य महल है। महल के मध्य प्रांगण में स्तंभित बारादरी या मंडप है; फ्रेस्को और रंगीन टाइलें जमीन और ऊपरी मंजिलों पर कमरों को सजाती हैं। इस मंडप (जिसका इस्तेमाल गोपनीयता के लिए किया जाता था) को महारानी (शाही परिवार की रानियों) ने सभा स्थल के रूप में इस्तेमाल किया था। इस मंडप के सभी किनारे खुले बालकनियों वाले कई छोटे कमरों से जुड़े हैं। इस महल से निकलने के कारण आमेर शहर, कई मंदिरों, महलनुमा घरों और मस्जिदों के साथ एक विरासत शहर बन जाता है। Conservation of Amer Quila – आमेर किले का संगरक्षणजून 2013 के दौरान में विश्व धरोहर समिति की 37 वीं बैठक के दौरान राजस्थान के छह किलों, अर्थात्, अंबर किला, चित्तौड़ किला, गागरोन किला, जैसलमेर किला, कुंभलगढ़ और रणथंभौर किला को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल किया गया था। आमेर डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी द्वारा 40 करोड़ रुपये की लागत से आमेर पैलेस मैदान में संरक्षण कार्य किए गए हैं। हालाँकि, ये नवीनीकरण कार्य प्राचीन संरचनाओं की ऐतिहासिकता और स्थापत्य सुविधाओं को बनाए रखने और उनकी उपयुक्तता के संबंध में गहन बहस और आलोचना का विषय रहे हैं। एक और मुद्दा जो उठाया गया है वह है जगह का व्यावसायीकरण। The post Amer Quila, Jaipur आमेर किला, जयपुर appeared first on Hindi Swaraj. source https://hindiswaraj.com/amer-quila-jaipur-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/amer-quila-jaipur.html
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माचू पिचू एक 15 वीं सदी का पेरू के सम्राट, इंका, का गढ़ है, जो दक्षिणी पेरू के पूर्वी कॉर्डिलेरा में स्थित है, जो 2,430 मीटर (7,970 फीट) की पहाड़ी पर स्थित है। यह कुस्को क्षेत्र, उरुबाम्बा प्रांत, माचुपिचू जिला पवित्र घाटी के ऊपर स्थित है, जो कुज़्को के उत्तर-पश्चिम में , 80 किलोमीटर पर है। उरुबाम्बा नदी इसे पार करती है, कॉर्डिलेरा के माध्यम से काटती है और उष्णकटिबंधीय पहाड़ी जलवायु के साथ एक घाटी बनाती है। History of Machu Picchu – माचू पिचू का इतिहासमाना जाता है कि माचू पिच्चू ,1450-1460 में बनाया गया था। हालांकि माचू पिचू को एक “शाही” संपत्ति माना जाता है, आश्चर्यजनक रूप से, इसे उत्तराधिकार की रेखा में पारित नहीं किया गया होगा। बल्कि इसे त्याग ने से पहले, 80 साल के लिए इस्तेमाल किया गया था। Daily life in Machu Picchu – माचू पिचू की रोज़ाना की ज़िन्दगीएक शाही संपत्ति के रूप में इसके उपयोग के दौरान, यह अनुमान लगाया जाता है कि लगभग 750 लोग वहां रहते थे, अधिकांश सहायक कर्मचारी के रूप में सेवा करते थे और वहां स्थायी रूप से रहते थे। हालांकि ये संपत्ति पचैकटेक की थी, धार्मिक विशेषज्ञ और अस्थायी विशेष कार्यकर्ता भी वहाँ रहते थे। कठोर मौसम के दौरान, लगभग सौ कर्मचारी नौकरों को निकाल दिया और कुछ धार्मिक विशेषज्ञों ने अकेले रखरखाव पर ध्यान केंद्रित किया। Agriculture in Machu Picchu – माचू पिचू में कृषिमाचू पिच्चू में की जाने वाली अधिकांश खेती अपने सैकड़ों मानव निर्मित छतों पर की गई थी। ये छज्जे काफी अच्छे ढंग से काम करते थे, जो अच्छी जल निकासी और मिट्टी की उर्वरता सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए थे, जबकि पहाड़ को कटाव और भूस्खलन से भी बचाते थे। हालाँकि, छत सही नहीं थे, क्योंकि भूमि के अध्ययन से पता चलता है कि माचू पिचू के निर्माण के दौरान भूस्खलन हुआ था। अभी भी दृश्यमान वे स्थान हैं जहां भूस्खलन द्वारा छतों को स्थानांतरित किया गया था और फिर इन्का द्वारा सही किया गया था क्योंकि वे क्षेत्र के चारों ओर निर्माण करना जारी रखते थे। Encounters of Machu Picchu – माचू पिचू की खोजभले ही माचू पिच्चू कुस्को में इंका राजधानी से केवल 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था, स्पेनिश इसे कभी नहीं ढून्ढ पाए और इसलिए इसे लूट या नष्ट नहीं किया। विजयकर्ताओं के पास पिच्चो नामक स्थान के नोट थे, हालांकि स्पेनिश यात्रा का कोई भी रिकॉर्ड मौजूद नहीं है। अन्य स्थानों के विपरीत, अक्सर विजय प्राप्त करने वाले पवित्र चट्टानें माचू पिचू से अछूती रहती हैं। 1911 में अमेरिकी इतिहासकार और खोजकर्ता हिरम बिंघम ने पुरानी इंका राजधानी की तलाश में इस क्षेत्र की यात्रा की और एक ग्रामीण, मेल्चोर आर्टेगा ने इसका नेतृत्व किया। हालांकि बिंघम खंडहरों की यात्रा करने वाले पहले व्यक्ति नहीं थे, उन्हें वैज्ञानिक खोजकर्ता माना जाता था जो माचू पिचू को अंतरराष्ट्रीय ध्यान में लाते थे। बिंघम ने 1912 में एक और अभियान का आयोजन किया जिसमें प्रमुख समाशोधन और उत्खनन किया गया। 1983 में, यूनेस्को ने माचू पिच्चू को एक विश्व धरोहर स्थल के रूप में नामित किया, इसे “वास्तुकला की एक पूर्ण कृति और इंका सभ्यता का एक अनूठा प्रमाण” के रूप में वर्णित किया। First American expedition – पहला अमेरिकी अभियान1909 में, सैंटियागो में पैन-अमेरिकन साइंटिफिक कांग्रेस से लौटते हुए, बिंघम ने पेरू की यात्रा की और उन्हें अपिरिमैक घाटी में चोइक्क्विराउ में इंका खंडहरों का पता लगाने के लिए आमंत्रित किया गया। इन्का राजधानी की खोज के लिए उन्होंने 1911 में येल पेरूवियन अभियान का आयोजन किया, जिसे विटकोस शहर माना जाता था। उन्होंने लीमा के प्रमुख इतिहासकारों में से एक कार्लोस रोमेरो से सलाह ली, जिन्होंने उन्हें सहायक संदर्भ और ऑगस्टोन डे ला कैलाचा के क्रॉनिकल ऑफ ऑगस्टीनियन को दिखाया। कुस्को में फिर से, बिंघम ने प्लांटर्स से कैलंका द्वारा वर्णित स्थानों के बारे में पूछा, खासकर उरुबाम्बा नदी के किनारे के बारे में । खंडहर ज्यादातर वनस्पति और कृषि उद्यान के रूप में किसानों द्वारा उपयोग किए जाने वाले क्लीयरिंग को छोड़कर वनस्पति से आच्छादित थे। वनस्पति के कारण, बिंघम साइट की पूरी हद तक निरीक्षण करने में सक्षम नहीं था। उन्होंने कई प्रमुख इमारतों के इंका पत्थर की गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए प्रारंभिक नोट, माप और तस्वीरें लीं। खंडहरों के मूल उद्देश्य के बारे में बिंघम अस्पष्ट था, लेकिन यह तय किया कि कोई संकेत नहीं था कि यह विटकोस के विवरण से मेल खाता है। Tournism in Machu Picchu – माचू पिचू का पर्यटनमाचू पिचू एक सांस्कृतिक और प्राकृतिक यूनेस्को विश्व विरासत स्थल दोनों है। 1911 में इसकी खोज के बाद से, प्रत्येक वर्ष 2017 में 1,411,279 सहित पर्यटकों की संख्या बढ़ती गई है। पेरू के सबसे अधिक पर्यटक आकर्षण और प्रमुख राजस्व जनरेटर के रूप में, यह लगातार आर्थिक और वाणिज्यिक बलों के संपर्क में है। 1990 के दशक के अंत में, पेरू सरकार ने एक केबल कार और एक लक्जरी होटल के निर्माण के लिए रियायतें दीं, जिसमें बुटीक और रेस्तरां के साथ एक पर्यटक परिसर और साइट पर एक पुल भी शामिल था। पेरू और विदेशी वैज्ञानिकों सहित कई लोगों ने योजनाओं का विरोध किया, कहा कि अधिक आगंतुक खंडहरों पर भौतिक बोझ डालेंगे। 2018 में, पेरूवासियों को माचू पिचू की यात्रा के लिए प्रोत्साहित करने और घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए फिर से एक केबल कार बनाने की योजना को फिर से शुरू किया गया। 2014 में माचू पिचू और पेरू के संस्कृति मंत्रालय में नग्न पर्यटन का चलन था, इस गतिविधि का खंडन किया। कस्को के संस्कृति निदेशक ने अभ्यास को समाप्त करने के लिए निगरानी बढ़ा दी। Motion Pictures in Machu Picchu – मोशन पिक्चर्स में माचू पिचूचार्लटन हेस्टन और इमा सुमाक के साथ पैरामाउंट पिक्चर्स की फिल्म सीक्रेट ऑफ द इनकस (1955) को कुस्को और माचू पिच्चू में स्थान पर फिल्माया गया था, जो पहली बार एक प्रमुख हॉलीवुड स्टूडियो साइट पर फिल्माया गया था। पांच सौ स्वदेशी लोगों को फिल्म में एक्स्ट्रा कलाकार के रूप में काम पर रखा गया था। फिल्म अगुइरे, द रथ ऑफ़ गॉड (1972) के शुरूआती सीक्वेंस को माचू पिच्चू क्षेत्र में और हुयाना पिच्चू के पत्थर की सीढ़ी पर शूट किया गया था। माचू पिचू को फिल्म द मोटरसाइकिल डायरीज़ (2004) में प्रमुखता से चित्रित किया गया था, जो मार्क्सवादी क्रांतिकारी चे ग्वेरा के 1952 के युवा यात्रा संस्मरण पर आधारित एक बायोपिक है। नोवा टेलीविजन डॉक्यूमेंट्री “घोस्ट ऑफ माचू पिच्चू” माचू पिच्चू के रहस्यों पर एक विस्तृत वृत्तचित्र प्रस्तुत करता है। मल्टीमीडिया कलाकार किमोज़ोजा ने अपनी फिल्म श्रृंखला थ्रेड रूट्स के पहले एपिसोड में मैकचू पिचू के पास 2010 में शूट किए गए फुटेज का इस्तेमाल किया। Music – संगीतदक्षिण भारतीय तमिल सरगर्मी (2010) के गीत “किलिमंजारो” को माचू पिचू में फिल्माया गया था। [89] भारत सरकार से सीधे हस्तक्षेप के बाद ही फिल्म निर्माण की मंजूरी दी गई थी। The post Machu Picchu माचू पिचू appeared first on Hindi Swaraj. source https://hindiswaraj.com/machu-picchu-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/machu-picchu.html बड़ा इमामबाड़ा, जिसे आसिफी मस्जिद के रूप में भी जाना जाता है, लखनऊ में एक इमामबाड़ा परिसर है, भारत में 1784 में अवध के नवाब आसफ-उद-दौला द्वारा बनाया गया था। बारा का अर्थ बड़ा होता है। Building composition of Bada Imaambada – बड़े इमामबाड़ा के भवन की रचनाइमारत में बड़ी आसिफी मस्जिद, भुल-भुलैया (भूलभुलैया), और बाउली भी शामिल है। मुख्य हॉल में दो प्रवेश द्वार हैं। ऐसा कहा जाता है कि छत तक पहुंचने के लिए 1024 रास्ते हैं लेकिन पहले गेट या आखिरी गेट पर वापस आने के लिए केवल दो ही हैं। यह एक आकस्मिक वास्तुकला है। Relief Measures in Bada Imaambada – बड़े इमामबाड़ा के रिलीफ मेज़रबड़ा इमामबाड़ा का निर्माण 1784 में शुरू हुआ था, जो एक विनाशकारी अकाल का वर्ष था, और इस भव्य परियोजना को शुरू करने में आसफ-उद-दौला के उद्देश्यों में से एक क्षेत्र में लोगों के लिए लगभग एक दशक तक रोजगार प्रदान करना था। ऐसा कहा जाता है कि आम लोग दिन के समय में इमारत का निर्माण करते थे, जबकि रईसों और अन्य संभ्रांत लोगों ने रात में काम किया। इमामबाड़ा के निर्माण की अनुमानित लागत आधा मिलियन रुपये से लेकर एक लाख रुपये के बीच है। पूरा होने के बाद भी, नवाब अपनी सजावट पर सालाना चार से पांच सौ हजार रुपये खर्च करते थे। Architecture of Bada Imaambada – बड़े इमामबाड़ा की वास्तु कलापरिसर की वास्तुकला सजावटी मुगल डिजाइन की परिपक्वता को दर्शाती है, अर्थात् बादशाही मस्जिद – यह किसी भी यूरोपीय तत्वों या लोहे के उपयोग को शामिल नहीं करने वाली अंतिम प्रमुख परियोजनाओं में से एक है। मुख्य इमामबाड़ा में एक बड़ा मेहराबदार केंद्रीय कक्ष है, जिसमें आसफ-उद-दौला का मकबरा है। 50 बाई 16 मीटर और 15 मीटर से अधिक लंबा, इसमें छत का समर्थन करने वाले कोई बीम नहीं हैं और यह दुनिया के सबसे बड़े धनुषाकार निर्माणों में से एक है। पूरे परिसर को भुलभूलिया कहा जा सकता है। यह एक लोकप्रिय आकर्षण के रूप में जाना जाता है, यह संभवतः भारत में एकमात्र मौजूदा भूलभुलैया है । आसफ-उद-दौला ने 18 मीटर (59 फुट) ऊंचे रूमी दरवाजा को भी बाहर की तरफ खड़ा किया। भव्य सजावट के साथ अलंकृत यह पोर्टल, इमामबाड़ा का पश्चिम-प्रवेश द्वार था। इमामबाड़ा का डिजाइन एक प्रतिस्पर्धी प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया गया था। इसके विजेता एक दिल्ली वास्तुकार किफ़ायतुल्लाह थे, जो इमामबाड़ा के मुख्य हॉल में ही दफन है। यह इमारत का एक और अनूठा पहलू है कि प्रायोजक और वास्तुकार एक-दूसरे के पास दफन हुए हैं। इमामबाड़ा की छत चावल की भूसी से बनाई गई है जो इस इमामबाड़े को एक अनोखी इमारत बनाती है। Legends of Bada Imaambada – बड़ा इमामबाड़ा का दिव्य दृश्यएक बंद सुरंग मार्ग भी है, जो कि लेजेंड्स के अनुसार, गोमती नदी के पास एक स्थान पर एक मील लंबे भूमिगत मार्ग से होकर जाता है। अन्य मार्ग फैजाबाद , इलाहाबाद, आगरा और यहां तक कि दिल्ली तक ले जाने की अफवाह है। वे मौजूद हैं, लेकिन लंबे समय तक उपयोग के बाद भी उन्हें सील कर दिया गया है और साथ ही उन लोगों के लापता होने पर आशंका है जो इसकी खोज में निकले थे। उन लोगों की खोज जरूर की गई थी लेकिन अभी भी वास्तविकता की जांच नहीं की गई है। The post Bada Imaambada, Lucknow- बड़ा इमामबाड़ा, लखनऊ appeared first on Hindi Swaraj. source https://hindiswaraj.com/bada-imaambada-lucknow-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/bada-imaambada-lucknow.html एफिल टॉवर फ्रांस, पेरिस में स्थित एक लोहे का जालीदार टॉवर है। इसका नाम इंजीनियर गुस्ताव एफिल के नाम पर रखा गया है, जिनकी कंपनी ने टॉवर का डिजाइन और निर्माण किया था। 1889 से 1889 तक 1889 के विश्व मेले के प्रवेश द्वार के रूप में निर्मित किया गया था। इसके शुरुआत में फ्रांस के कुछ प्रमुख कलाकारों और बुद्धिजीवियों द्वारा इसकी डिजाइन के लिए आलोचना की गई थी। लेकिन आज यह फ्रांस का वैश्विक सांस्कृतिक प्रतीक बन गया है और दुनिया में सबसे पहचानने योग्य संरचनाओं में से एक है। एफिल टॉवर दुनिया में सबसे अधिक देखा जाने वाला स्मारक है; 2015 में 6.91 मिलियन लोगों ने इसे देखा। History of Eiffel Tower – एफिल टावर का इतिहासएफिल टॉवर के डिजाइन का श्रेय मौरिस कोचलिन और थेमिले नौगुइएर को दिया जाता है, जो इसके निर्माण के लिए काम करने वाले दो वरिष्ठ इंजीनियर है। फ्रांसीसी क्रांति के शताब्दी वर्ष का जश्न मनाने के लिए दुनिया के मेले के प्रस्तावित 1889 प्रदर्शनी में यूनिवर्स के लिए, एक उपयुक्त केंद्र बिंदु बनाने के बारे में चर्चा की गयी । एफिल ने खुले तौर पर स्वीकार किया कि एक टावर के लिए प्रेरणा 1853 में न्यूयॉर्क शहर में बनी लैटिंग वेधशाला से मिली थी। टॉवर के स्थान के बारे में कुछ बहस के बाद, 8 जनवरी 1887 को एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए गए । यह एफिल ने अपनी कंपनी के प्रतिनिधि के बजाय अपने खुद के नाम से हस्ताक्षर किया था, और निर्माण लागत की ओर उन्हें 1.5 मिलियन फ्रैंक दिए थे । प्रस्तावित टॉवर विवाद का विषय रहा था और इसने उन लोगों की आलोचना को आकर्षित किया जो कलात्मक आधार पर इसपर अपनी आपत्ति व्यक्त करते थे। एफिल टॉवर के निर्माण से पहले, कोई संरचना कभी भी कम से कम 300 मीटर की ऊंचाई तक नहीं बनाई गई थी, और कई लोग इसे असंभव मानते थे। ये आपत्तियां फ्रांस में वास्तुकला और इंजीनियरिंग के बीच संबंधों के बारे में लंबे समय से चली आ रही बहस की अभिव्यक्ति थीं। गुस्ताव एफिल ने अपने टॉवर की मिस्र के पिरामिडों से तुलना करके इन आलोचनाओं का जवाब दिया: “मेरा टॉवर आदमी द्वारा बनाया गया अब तक का सबसे लंबा एडिफ़ाइस होगा। क्या यह भी अपने तरीके से भव्य नहीं होगा? “ टॉवर 324 मीटर (1,063 फीट) लंबा है, जिसकी 81-मंजिला इमारत के समान ऊंचाई है। ये पेरिस में सबसे ऊंची संरचना है। इसका आधार वर्गाकार है, जिसके दोनों ओर 125 मीटर (410 फीट) की दूरी है। अपने निर्माण के दौरान, एफिल टॉवर ने वाशिंगटन स्मारक को दुनिया की सबसे लंबी मानव निर्मित संरचना बनने के लिए पीछे छोड़ दिया। टॉवर में आगंतुकों के लिए तीन स्तर हैं, पहले और दूसरे स्तर पर रेस्तरां है और शीर्ष स्तर, ऊपरी मंच जमीन से 276 मीटर (906 फीट) ऊपर है। यूरोपीय संघ वहाँ जनता के लिए सुलभ उच्चतम अवलोकन डेक का निर्माण कराया। जमीनी स्तर से पहले स्तर तक 300 चरणों से अधिक की सीढ़ी की है, जैसा कि पहले स्तर से दूसरे स्तर तक है। मुख्य संरचनात्मक कार्य मार्च 1889 के अंत में पूरा हुआ और 31 मार्च को एफिल ने सरकारी अधिकारियों के एक समूह, प्रेस के प्रतिनिधियों के साथ, टॉवर के शीर्ष पर मनाया। टॉवर को जनता से सफलता हासिल हुई , और लगभग 30,000 आगंतुकों ने 26 मई को सेवा में प्रवेश करने से पहले 1,710-कदम की चोटी पर चढ़ाई की। टिकटों की कीमत पहले स्तर के लिए 2 फ्रैंक, दूसरे के लिए 3, और शीर्ष के लिए 5 थी। रविवार को आधे मूल्य पर प्रवेश उपलब्ध था, और प्रदर्शनी के अंत तक 1,896,987 आगंतुक थे। Replicas of Eiffel Tower – एफिल टावर के रेप्लिकादुनिया के सबसे प्रतिष्ठित स्थलों में से एक के रूप में, एफिल टॉवर कई प्रतिकृतियों और इसी तरह के टावरों के निर्माण की प्रेरणा रहा है। एक प्रारंभिक उदाहरण इंग्लैंड में ब्लैकपूल टॉवर है। ब्लैकपूल के महापौर, सर जॉन बेकरस्टाफ, 1889 के प्रदर्शनी में एफिल टॉवर को देखकर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने शहर में इसी तरह के एक टॉवर का निर्माण किया। यह 1894 में खुला और 158.1 मीटर (518 फीट) लंबा है। Transmission from Eiffel Tower – एफिल टावर से संचार माध्यमटॉवर का उपयोग 20 वीं शताब्दी की शुरुआत से रेडियो प्रसारण बनाने के लिए किया गया है। 1950 के दशक तक, हवाई जहाज के सेट कपोला से एवेन्यू डे सफ्रेन और चैंपियन डी मार्स पर लंगर के लिए चले। ये छोटे बंकरों में लॉन्गवेव ट्रांसमीटरों से जुड़े थे। 1909 में, दक्षिण स्तंभ के पास एक स्थायी भूमिगत रेडियो केंद्र बनाया गया था, जो आज भी मौजूद है। 20 नवंबर 1913 को, पेरिस ऑब्जर्वेटरी ने एफिल टॉवर को एक हवाई के रूप में उपयोग करते हुए, संयुक्त राज्य नौसेना वेधशाला के साथ वायरलेस सिग्नल का आदान-प्रदान किया, जिसमें वर्जीनिया के अर्लिंगटन में एक हवाई का उपयोग किया गया था। आज, एफिल टॉवर से रेडियो और डिजिटल टेलीविजन सिग्नल प्रसारित किए जाते हैं। Eiffel Tower – Worlds longest tower | एफिल टावर – सबसे लम्बा ढांचा1889 में पूरा होने पर एफिल टॉवर दुनिया की सबसे ऊँची संरचना थी, 1929 तक यह अंतर बरकरार रहा। जब न्यूयॉर्क शहर में क्रिसलर बिल्डिंग सबसे ऊपर बनी, टॉवर ने दुनिया की सबसे ऊंची संरचना और दुनिया के सबसे ऊंचे जाली टॉवर के रूप में अपना स्थान खो दिया है, लेकिन फ्रांस में सबसे ऊंची फ्रीस्टैंडिंग (गैर-पुरुष) संरचना के रूप में अपनी स्थिति को बरकरार रखता है। The post Eiffel Tower- एफिल टावर appeared first on Hindi Swaraj. source https://hindiswaraj.com/eiffel-tower-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/eiffel-tower.html इंडिया गेट, एक युद्ध स्मारक है, जो नई दिल्ली के राजपथ पर, “सेरेमोनियल एक्सिस” के ईस्टर्न एन्ड पर स्थित है, जिसे पहले किंग्सवे कहा जाता था। यह ब्रिटिश भारतीय सेना के 70,000 सैनिकों के लिए एक स्मारक के रूप में खड़ा है, जो 1914-1921 के बीच प्रथम विश्व युद्ध में फ्रांस, फ्लैंडर्स, मेसोपोटामिया, पर्शिया, पूर्वी अफ्रीका, गैलीपोली और तीसरा एंग्लो-अफगान युद्ध में मारे गए थे। यूनाइटेड किंगडम के कुछ सैनिकों और अधिकारियों सहित 13,300 सैनिकों के नाम गेट पर अंकित हैं। सर एडविन लुटियंस द्वारा डिज़ाइन किया गया, विजयी शैली की वास्तुकला को दर्शाता है। अमर जवान ज्योति (अमर सैनिक की लौ) नामक यह संरचना 1971 से भारत के अज्ञात सैनिकों की याद में स्मारक है। प्रधान मंत्री अमर जवान ज्योति पर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए गेट का दौरा करते हैं, जिसके बाद गणतंत्र दिवस की परेड शुरू होती है। History of India Gate – इंडिया गेट का इतिहासइंडिया गेट इंपीरियल वॉर ग्रेव्स कमीशन (IWGC) के काम का हिस्सा था, जो दिसंबर 1917 में प्रथम विश्व युद्ध में मारे गए सैनिकों के लिए युद्ध स्मारक है और स्मारक बनाने के लिए गेट का शिलान्यास हुआ । शिलान्यास समारोह के दस साल बाद, 12 फरवरी 1931 को, स्मारक का उद्घाटन लॉर्ड इरविन द्वारा किया गया था, जिन्होंने इस अवसर पर कहा था “जो लोग हमारे बाद इस स्मारक को देखेंगे, वे अपने उद्देश्य और बलिदान के बारे में कुछ सीख सकते हैं। इसकी दीवारों पर नाम दर्ज हैं “। दशक में स्मारक की आधारशिला रखने और इसके उद्घाटन के बीच, यमुना नदी के साथ चलने के लिए रेल-लाइन को स्थानांतरित किया गया था, और नई दिल्ली रेलवे स्टेशन 1926 में खोला गया था। 19:00 से 21:30 के बीच हर शाम रोशन किया जाने वाला यह द्वार आज दिल्ली के सबसे महत्वपूर्ण पर्यटक आकर्षणों में से एक है। कारों को पहले गेट से गुजारा जाता था, जब तक कि इसे यातायात के लिए बंद नहीं कर दिया जाता था। गड़तंत्र दिवस की परेड राष्ट्रपति भवन से शुरू होती है और इंडिया गेट के आसपास से गुजरती है। इंडिया गेट भी न्यू यॉर्क में नागरिक समाज के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। Design and Structure of India Gate – इंडिया गेट का डिज़ाइन और संरचनामेमोरियल-गेट सर एडविन लुटियन द्वारा डिजाइन किया गया था, जो न केवल नई दिल्ली के मुख्य वास्तुकार थे, बल्कि युद्ध स्मारक के एक प्रमुख डिजाइनर थे। वह I.W.G.C के सदस्य थे , और युद्ध कब्रों और स्मारकों के यूरोप के अग्रणी डिजाइनरों में से एक थे। उन्होंने 1919 में, लंदन में उच्च माना जाने वाला सेनोटाफ सहित यूरोप में छब्बीस युद्ध स्मारक तैयार किए, प्रथम विश्व युद्ध के बाद पहला राष्ट्रीय युद्ध स्मारक बनाया गया था, जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड लॉयड जॉर्ज द्वारा कमीशन किया गया था। Inscription – इंस्क्रिप्शनइंडिया गेट के कोने को इंपीरियल सूरज के साथ अंकित किया गया है, जबकि मेहराब के दोनों किनारों पर INDIA है, जो तारीखों MCMXIV (‘1914’, बाईं ओर) और MCMXIX (‘1919’) दाईं ओर फ़्लैंक करती है। INDIA शब्द के नीचे, बड़े अक्षरों में, अंकित है: ” TO THE DEAD OF THE INDIAN ARMIES WHO FELL AND ARE HONOURED IN FRANCE AND FLANDERS MESOPOTAMIA AND PERSIA EAST AFRICA GALLIPOLI AND ELSEWHERE IN THE NEAR AND THE FAR-EAST AND IN SACRED MEMORY ALSO OF THOSE WHOSE NAMES ARE HERE RECORDED AND WHO FELL IN INDIA OR THE NORTH-WEST FRONTIER AND DURING THE THIRD AFGHAN WAR “ स्मारक पर शहीद हुए 13,218 जवानों का नाम लिखा हुआ है लेकिन सुरक्षा कारणों की वजह से स्मारक पर नाम पढ़ने के लिए पहुँच प्रतिबंधित है, हालांकि उन्हें दिल्ली स्मारक पर देखा जा सकता है। Canopy – कैनोपीगेट से लगभग 150 मीटर की दूरी पर, छह सड़कों के एक जंक्शन पर, 73 फुट का कपोला है, जो महाबलिपुरम से छठी शताब्दी के मंडप से प्रेरित है। लुटियन ने गुंबददार कैनोपी और उसके छज्जे का समर्थन करने के लिए चार दिल्ली ऑर्डर कॉलम का इस्तेमाल किया गया है । कैनोपी का निर्माण 1936 में भारत के हाल ही में मृतक सम्राट किंग जॉर्ज पंचम की श्रद्धांजलि के हिस्से के रूप में किया गया था। कैनोपी मूल रूप से एक सोने का पानी चढ़ा ट्यूडर क्राउन द्वारा सबसे ऊपर थी और जॉर्ज वी के रॉयल साइफर्स को बोर करती । इसे 12 अगस्त 1958 को हटा दिया गया। यहां पर किंग जॉर्ज वी भी थी जिसको ंबाद में हटा दिया गया था। प्रतिमा को हटाने के दौरान और बाद में, यह सुझाव दिया गया था कि महात्मा गांधी की प्रतिमा को चंदवा के नीचे रखा गया है। यह सुझाव भारतीय संसद में भी चर्चा में था। 1981 में, सरकार ने संसद में एक प्रश्न के उत्तर में पुष्टि की थी कि वह खाली छतरी के नीचे एक गांधी प्रतिमा की स्थापना पर विचार कर रही थी, लेकिन इससे कुछ भी नहीं हुआ। Amar Jawaan Jyoti – अमर जवान ज्योतिअमर जवान ज्योति, या अमर सिपाही की ज्वाला, एक संरचना है जो काले संगमरमर के पठार पर स्थित है, जिसमें उल्टे L1A1 स्व-लोडिंग राइफल, युद्ध लगे हुए हैं जिसपर हैलमेट लगा हुआ है। जैविकगैस की लपटें 1971 में बांग्लादेश की मुक्ति के युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए इंडिया गेट के नीचे खड़ी हुईं हैं। इसका उद्घाटन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को किया था, जो तेईसवां भारतीय गणतंत्र दिवस था। Nation War Memorial – राष्ट्र युद्ध स्मारकजुलाई 2014 में, सरकार ने कैनोपी के आसपास राष्ट्र युद्ध स्मारक, और राजकुमारी पार्क से सटे एक राष्ट्रीय युद्ध संग्रहालय बनाने की योजना की घोषणा की। कैबिनेट ने परियोजना के लिए 500 करोड़ रुपये या अमेरिकी डॉलर 66 मिलियन के बारे में आवंटित किए। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक जनवरी 2019 में पूरा हुआ था। The post India Gate, Delhi- इंडिया गेट, दिल्ली appeared first on Hindi Swaraj. source https://hindiswaraj.com/india-gate-delhi-in-hindi/ from https://hindiswarajcom.blogspot.com/2020/07/india-gate-delhi.html |
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